Friday, October 9, 2009

नारी उत्थान का नंगा सच



नारी
उत्थान और समाज में उनकी स्थितिक बराबरी का मै पछ धर हूँ पर परम्पराओं व्यवस्थाओं के अवमूल्यन और उन्मूलन की शर्त पर नहीं ,,, आज समाज में स्त्रियों की दशा सोचनीय है ,(यहाँ पर मै वैश्विक समाज की बात कर रहा हूँ ) उनका शोषण होता है शत प्रतिशत सही है ,, उनकी क्षमता, योग्यता , और कार्यशीलता का मूल्यांकन पक्षपात पूर्ण है,,,,लेकिन इसके लिए दोषी कौन है ये विचारणीय प्रश्न है,,, सम्पूर्ण पुरुष समाज की सहभागिता और पुरातन परम्पराओं , व्यवस्थाओं को अगर एक तरफ धकेल भी दिया जाए (जैसे की पश्चिमी समाज में काफी हद तक है ) फिर भी स्त्रियों उनकी दशा में प्रतिशत का सुधार होने बाला नही ,, समाज को बाँट कर और एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप लगा कर किसी भी समस्या के हल पर नहीं पंहुचा जा सकता,,, पश्चिमी समाज में जहा स्त्री स्वंतत्र है, आत्म निर्भर है (यहाँ आत्म निर्भरता से मतलब सेक्सुअल आत्म निर्भरता से भी लिया जाए ) और पुरुषों से किसी मामले में कम तर नहीं है (जैसा की कथित स्त्रीवादी कहते है ) स्त्रियों की दशा क्या है मै दू लायनो में स्पस्ट करना चाहूंगा ,,,,
कुछ तथ्य देखिये

--हर में से एक अमेरिकन स्त्री अपनी जिन्दगी में बलात्कार की शिकार होती है,,,
--१७. मिलियन अमेरिकन औरते पूर्ण या आंशिक बलात्कार की शिकार है ,,,
-१५ % बलात्कार की शिकार १२ साल से कम उम्र की लड़किया है ,,,
--लगभग % अमेरिकन पुरुषों ने हर ३३ में ने अपनी जिन्दगी में कभी कभी पूर्ण या आंशिक बलात्कार किया है ...
एक चाइल्ड प्रोटेक्शन संस्था की १९९५ की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में १२६००० बच्चे बलात्कार के शिकार है जिनमे से 75 % लड़किया है और लगभग ३० % शिकार बच्चे से की उम्र के बीच के है
ये आकडे कम नहीं है अगर हम इन की अन्य विपत्तियों से तुलना करते है तो स्तिथि की भयानकता स्पस्ट हो जाती है ,,, ,,
जरा देखे
बलात्कार की शिकार महिलाओं की संख्या डिप्रेशन के शिकार रोगियों से तिगुनी ,,शराब पीकर गाली देने वालो से १३ गुनी ,, नशीला पदार्थ ले कर गाली देने वालो से २६ गुनी और आत्म हत्या करने वालो से चौगुनी है ,,,
ये तो बहुत कम आकडे है ,,,,
अगर इसी प्रगति के लिए हमारे कथित प्रगति वादी (जिन्हें पश्चिमी की हवा लगी है ) हाय तोबा मचा रहे है तो येसी प्रगति को हम तो बर्दास्त नहीं कर सकते,,,,
अब बात शुरू करते है नारी शास्क्तिकरण और नारी उत्थान की (जिसकी हवा बाँध कर कुछ चंद प्रगतिवादी अपनी पद प्रतिस्ठा और अर्थ की रोटियां सेक रहे है और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को दिग्भर्मित किये है ),,,, आखिर नारी वादी आन्दोलन है क्या? मै तो आज तक नहीं समझ पाया .,,,, क्या नारी वादी आन्दोलन वास्तव में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए की जा रही कोई क्रान्ति है ?,, या फिर पश्चिम से लिया गया एक खोखला दर्शन ,, जिससे स्त्री उत्थान तो संभव नहीं हां अवनति के द्वार अवस्य खुलते है ,,, अगर पश्चिम के इस दर्शन से कुछ हो सकता तो पश्चिमी समाज में स्त्रियो की जो दशा आज है शायद वो नहीं होती ,,,,,
हत्या ----दिसम्बर २००५ की रिपोर्ट के आधार अनुसार अकेले अमेरिका में ११८१ एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी ,,,,
अब अंत रंग साथियो ने येसा क्यूँ किया कारण आप सोचे ,,,,नहीं नहीं नहीं नंगा पन (कथित प्रगतिवाद ) इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ,,,
घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में . मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है ,,, और इनमे से कम से कम २० % हो अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण ---- पुरुष विरोधी मानसिकता और पारिवारिक व्यवस्थाओं में अविस्वाश और निज का अहम् (जो की कथित प्रगतिवाद की श्रेणी में आता है ) तो कतई नहीं होना चाहिए ,,,
सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में २००६ के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो ६०० औरते प्रति दिन आता है,,,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है ,,, वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते येसा सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके ,,,
कारण --- इन निकम्मे प्रगतिवादियों और नारी वादियों द्बारा खड़े किये गए पुरुष विरोधी बबंडर रूपी भूत की परिणिति से उत्पन्न स्त्री पुरुष बिरोध और वैमन्यस्यता ( स्त्रियों को पुरुषों के खिलाफ खूब भरा जाना और और पुरुषों का स्त्र्यो की सत्ता के प्रति एक भय का अनुभव )तो बिलकुल नहीं ये आकडे बहुत है मै कम दे रहा हूँ और उद्देश्य बस इतना ही है की पुरुष विरोध के कथित पूर्वाग्रह को छोडिये ( जिसे मै पश्चिम की दें मानता हूँ )
इसमें किसी तरह का कोई नारी विरोध नहीं है और ना ही मै ये चाह्ता हूँ की उनकी स्तिथि में सुधार ना हो ,, बल्कि मै तो आम उन स्त्रियों को समझाना चाहता हूँ (जो इन कथित प्रगतिवादी महिलाओं और पुरुषों के द्बारा उनके निजी लाभ के कारण उकसाई जा रही है) की इनके प्रगतिवाद में कोई दम नहीं अगर वास्तव में आप को समाज में अपनी स्तिथि को उच्चता पर स्थापित करना है तो आप को उस भारतीय परम्परा की ओर बापस आना होगा ( जो कहता है स्त्रिया पुरुषों से अधिक उच्च है ) है ,,,
अब कथित प्रगतिवादियों के लिए छोटा सन्देश आप को अपनी प्रस्थ भूमि पर फिर विचार करने की आवश्यकता है और देखना है की जिस प्रगतिवाद की दुहाई आप दे रही है और जिन्हें आप

ने
मानक के रूप में स्थापित कर रक्खा है ,, क्या प्रगति वाद से उनकी वास्तव में कोई भी प्रगति हुई इतने लम्बे चले पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल विच्च का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

अब येसा नहीं है की मै सभी नारी उत्थान में लगी महिलाओं की बुराई कर रहा हूँ मै तो ये फटकार केवल उनही चंद महिलावादियो को लगा रहा हूँ जो महिलाओं को उनकी स्तिथि से दिग्भ्रमित कर रही है और निजी स्वार्थ बस पुरुष विरोधी मानसिकता का प्रसार और पश्चिमी नारीवादी दर्शन(जो की अब फ्लॉप हो गया है ) का प्रचार कर रही है ,,,
ये मेरा ही मानना नहीं है बल्कि सच्ची नारी वादी महिलाए( यहाँ पर मेरा सच्ची नारी वादी महिलाओं से मतलब उन प्रबुद्ध महिलाओं से है जो पश्चिमी ब्नारिवादी दर्शन को भारतीय महिलाओं के लिए अभिशाप मानती है और सतत भारतीय मानको के आधार पर नारी उठान में लगी हुई है )
भी यही सोचती है उनमे से कुछ का उदहारण मै यहाँ पर दूंगा ,,,

मीडिया से ताल्लुक रखने वाली संध्या जैन कहती हैआज जो कानून बन रहे हैं वो विदेशी कानूनों की अंधी नकल भर हैं। उनमें विवेक का नितांत अभाव है। उन्होंने कहा कि अगर हमारे बेटे-बेटियां लिव इन रिलेशनशिप के तहत रहेंगे तो क्या हम खुश रहेंगे। क्या उनके इस फैसले से हमारी आत्मा को दुख नहीं होगा। अगर दुख होगा तो हमें ऐसे कानून का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर तो कोई बात ही नहीं।"

गांधी विद्या संस्थान की निदेशक कुसुमलता केडिया जी के अनुसार भारतीय स्त्री किसी ने बिगाड़ी तो वो थे दो तामसिक प्रवाह- इस्लाम और ईसाइयत का भारत में आगमन। केवल भारत में ही नहीं ये दोनों शक्तियां जहां भी गईं वहां की संस्कृति की इन्होंने जमकर तोड़-फोड़ की। ईसाई विचारधारा के अनुसार स्त्री ईंख के समान है जिसे चाहें तो चबाएं या रस निकाल उसे पीकर फेंक दें। दूसरी ओर इस्लाम स्त्री को पूर्णत ढंक देने की वकालत करता है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि इससे स्त्री का सांस लेना दूभर जाएगा।

ईसाई धर्म ने स्त्रियों पर जमकर अत्याचार किया।

जो स्त्री अधिक बोलती थी उसे मर्द रस्सी में बांधकर नदी में बार-बार डूबोते थे। यही उसकी सजा थी। लेकिन हमारे देश में इन दोनों के आगमन से पूर्व स्त्रियों की हमेशा सम्मानजनक स्थिति रही। विघटन तो इनके संसर्ग से हुआ। भारत के संदर्भ में नारी मुक्ति यही है कि भारतीय स्त्री फिर उसी पुरातन स्त्री का स्मरण कर अपने उस रूप को प्राप्त करे। कि पश्चिम की स्त्रियों का नकल करे।

समाज सेविका निर्मला शर्मा के अनुसार " भारत के गांवों में रहने वाली स्त्री तो मुक्त होने की इच्छा व्यक्त नहीं करती। एक मजदूरन भी ऐसी सोच नहीं रखती। मुक्ति वो स्त्रियां चाहती हैं जो कम कपड़ों में टेलीविजन के विज्ञापनों में नजर आती हैं ताकि वो कपड़ों का बोझ और हल्का कर सकें। नारी मुक्ति के बारे में वो औरतें सोचती हैं जिनकी जुबान पर हमेशा रहता हैये दिल मांगे मोर


निष्कर्ष यही है की नारी उत्थान और बराबरी आबश्यक है पर उसके मानक भारतीय हो
तथ्य और आकडे साभार.....

-Bureau of Justice Statistics,

2Deptartment of Justice,

3Centers for Disease Control and Prevention (CDC),

4National Coalition Against Domestic Violence (NCADV),

5Bureau of Justice Statistics (table 2, page 15),

6US Census Bureau (page 12),


7National Institute of Justice (pages 6-7),


8Family Violence Prevention Fund,



9University of North Carolina,

10National Coalition of Anti-Violence Programs (NCAVP),

11http://www.bhartiyapaksha.com/?p=1634