Friday, October 9, 2009

नारी उत्थान का नंगा सच



नारी
उत्थान और समाज में उनकी स्थितिक बराबरी का मै पछ धर हूँ पर परम्पराओं व्यवस्थाओं के अवमूल्यन और उन्मूलन की शर्त पर नहीं ,,, आज समाज में स्त्रियों की दशा सोचनीय है ,(यहाँ पर मै वैश्विक समाज की बात कर रहा हूँ ) उनका शोषण होता है शत प्रतिशत सही है ,, उनकी क्षमता, योग्यता , और कार्यशीलता का मूल्यांकन पक्षपात पूर्ण है,,,,लेकिन इसके लिए दोषी कौन है ये विचारणीय प्रश्न है,,, सम्पूर्ण पुरुष समाज की सहभागिता और पुरातन परम्पराओं , व्यवस्थाओं को अगर एक तरफ धकेल भी दिया जाए (जैसे की पश्चिमी समाज में काफी हद तक है ) फिर भी स्त्रियों उनकी दशा में प्रतिशत का सुधार होने बाला नही ,, समाज को बाँट कर और एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप लगा कर किसी भी समस्या के हल पर नहीं पंहुचा जा सकता,,, पश्चिमी समाज में जहा स्त्री स्वंतत्र है, आत्म निर्भर है (यहाँ आत्म निर्भरता से मतलब सेक्सुअल आत्म निर्भरता से भी लिया जाए ) और पुरुषों से किसी मामले में कम तर नहीं है (जैसा की कथित स्त्रीवादी कहते है ) स्त्रियों की दशा क्या है मै दू लायनो में स्पस्ट करना चाहूंगा ,,,,
कुछ तथ्य देखिये

--हर में से एक अमेरिकन स्त्री अपनी जिन्दगी में बलात्कार की शिकार होती है,,,
--१७. मिलियन अमेरिकन औरते पूर्ण या आंशिक बलात्कार की शिकार है ,,,
-१५ % बलात्कार की शिकार १२ साल से कम उम्र की लड़किया है ,,,
--लगभग % अमेरिकन पुरुषों ने हर ३३ में ने अपनी जिन्दगी में कभी कभी पूर्ण या आंशिक बलात्कार किया है ...
एक चाइल्ड प्रोटेक्शन संस्था की १९९५ की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में १२६००० बच्चे बलात्कार के शिकार है जिनमे से 75 % लड़किया है और लगभग ३० % शिकार बच्चे से की उम्र के बीच के है
ये आकडे कम नहीं है अगर हम इन की अन्य विपत्तियों से तुलना करते है तो स्तिथि की भयानकता स्पस्ट हो जाती है ,,, ,,
जरा देखे
बलात्कार की शिकार महिलाओं की संख्या डिप्रेशन के शिकार रोगियों से तिगुनी ,,शराब पीकर गाली देने वालो से १३ गुनी ,, नशीला पदार्थ ले कर गाली देने वालो से २६ गुनी और आत्म हत्या करने वालो से चौगुनी है ,,,
ये तो बहुत कम आकडे है ,,,,
अगर इसी प्रगति के लिए हमारे कथित प्रगति वादी (जिन्हें पश्चिमी की हवा लगी है ) हाय तोबा मचा रहे है तो येसी प्रगति को हम तो बर्दास्त नहीं कर सकते,,,,
अब बात शुरू करते है नारी शास्क्तिकरण और नारी उत्थान की (जिसकी हवा बाँध कर कुछ चंद प्रगतिवादी अपनी पद प्रतिस्ठा और अर्थ की रोटियां सेक रहे है और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को दिग्भर्मित किये है ),,,, आखिर नारी वादी आन्दोलन है क्या? मै तो आज तक नहीं समझ पाया .,,,, क्या नारी वादी आन्दोलन वास्तव में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए की जा रही कोई क्रान्ति है ?,, या फिर पश्चिम से लिया गया एक खोखला दर्शन ,, जिससे स्त्री उत्थान तो संभव नहीं हां अवनति के द्वार अवस्य खुलते है ,,, अगर पश्चिम के इस दर्शन से कुछ हो सकता तो पश्चिमी समाज में स्त्रियो की जो दशा आज है शायद वो नहीं होती ,,,,,
हत्या ----दिसम्बर २००५ की रिपोर्ट के आधार अनुसार अकेले अमेरिका में ११८१ एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी ,,,,
अब अंत रंग साथियो ने येसा क्यूँ किया कारण आप सोचे ,,,,नहीं नहीं नहीं नंगा पन (कथित प्रगतिवाद ) इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ,,,
घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में . मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है ,,, और इनमे से कम से कम २० % हो अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण ---- पुरुष विरोधी मानसिकता और पारिवारिक व्यवस्थाओं में अविस्वाश और निज का अहम् (जो की कथित प्रगतिवाद की श्रेणी में आता है ) तो कतई नहीं होना चाहिए ,,,
सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में २००६ के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो ६०० औरते प्रति दिन आता है,,,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है ,,, वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते येसा सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके ,,,
कारण --- इन निकम्मे प्रगतिवादियों और नारी वादियों द्बारा खड़े किये गए पुरुष विरोधी बबंडर रूपी भूत की परिणिति से उत्पन्न स्त्री पुरुष बिरोध और वैमन्यस्यता ( स्त्रियों को पुरुषों के खिलाफ खूब भरा जाना और और पुरुषों का स्त्र्यो की सत्ता के प्रति एक भय का अनुभव )तो बिलकुल नहीं ये आकडे बहुत है मै कम दे रहा हूँ और उद्देश्य बस इतना ही है की पुरुष विरोध के कथित पूर्वाग्रह को छोडिये ( जिसे मै पश्चिम की दें मानता हूँ )
इसमें किसी तरह का कोई नारी विरोध नहीं है और ना ही मै ये चाह्ता हूँ की उनकी स्तिथि में सुधार ना हो ,, बल्कि मै तो आम उन स्त्रियों को समझाना चाहता हूँ (जो इन कथित प्रगतिवादी महिलाओं और पुरुषों के द्बारा उनके निजी लाभ के कारण उकसाई जा रही है) की इनके प्रगतिवाद में कोई दम नहीं अगर वास्तव में आप को समाज में अपनी स्तिथि को उच्चता पर स्थापित करना है तो आप को उस भारतीय परम्परा की ओर बापस आना होगा ( जो कहता है स्त्रिया पुरुषों से अधिक उच्च है ) है ,,,
अब कथित प्रगतिवादियों के लिए छोटा सन्देश आप को अपनी प्रस्थ भूमि पर फिर विचार करने की आवश्यकता है और देखना है की जिस प्रगतिवाद की दुहाई आप दे रही है और जिन्हें आप

ने
मानक के रूप में स्थापित कर रक्खा है ,, क्या प्रगति वाद से उनकी वास्तव में कोई भी प्रगति हुई इतने लम्बे चले पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल विच्च का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

अब येसा नहीं है की मै सभी नारी उत्थान में लगी महिलाओं की बुराई कर रहा हूँ मै तो ये फटकार केवल उनही चंद महिलावादियो को लगा रहा हूँ जो महिलाओं को उनकी स्तिथि से दिग्भ्रमित कर रही है और निजी स्वार्थ बस पुरुष विरोधी मानसिकता का प्रसार और पश्चिमी नारीवादी दर्शन(जो की अब फ्लॉप हो गया है ) का प्रचार कर रही है ,,,
ये मेरा ही मानना नहीं है बल्कि सच्ची नारी वादी महिलाए( यहाँ पर मेरा सच्ची नारी वादी महिलाओं से मतलब उन प्रबुद्ध महिलाओं से है जो पश्चिमी ब्नारिवादी दर्शन को भारतीय महिलाओं के लिए अभिशाप मानती है और सतत भारतीय मानको के आधार पर नारी उठान में लगी हुई है )
भी यही सोचती है उनमे से कुछ का उदहारण मै यहाँ पर दूंगा ,,,

मीडिया से ताल्लुक रखने वाली संध्या जैन कहती हैआज जो कानून बन रहे हैं वो विदेशी कानूनों की अंधी नकल भर हैं। उनमें विवेक का नितांत अभाव है। उन्होंने कहा कि अगर हमारे बेटे-बेटियां लिव इन रिलेशनशिप के तहत रहेंगे तो क्या हम खुश रहेंगे। क्या उनके इस फैसले से हमारी आत्मा को दुख नहीं होगा। अगर दुख होगा तो हमें ऐसे कानून का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर तो कोई बात ही नहीं।"

गांधी विद्या संस्थान की निदेशक कुसुमलता केडिया जी के अनुसार भारतीय स्त्री किसी ने बिगाड़ी तो वो थे दो तामसिक प्रवाह- इस्लाम और ईसाइयत का भारत में आगमन। केवल भारत में ही नहीं ये दोनों शक्तियां जहां भी गईं वहां की संस्कृति की इन्होंने जमकर तोड़-फोड़ की। ईसाई विचारधारा के अनुसार स्त्री ईंख के समान है जिसे चाहें तो चबाएं या रस निकाल उसे पीकर फेंक दें। दूसरी ओर इस्लाम स्त्री को पूर्णत ढंक देने की वकालत करता है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि इससे स्त्री का सांस लेना दूभर जाएगा।

ईसाई धर्म ने स्त्रियों पर जमकर अत्याचार किया।

जो स्त्री अधिक बोलती थी उसे मर्द रस्सी में बांधकर नदी में बार-बार डूबोते थे। यही उसकी सजा थी। लेकिन हमारे देश में इन दोनों के आगमन से पूर्व स्त्रियों की हमेशा सम्मानजनक स्थिति रही। विघटन तो इनके संसर्ग से हुआ। भारत के संदर्भ में नारी मुक्ति यही है कि भारतीय स्त्री फिर उसी पुरातन स्त्री का स्मरण कर अपने उस रूप को प्राप्त करे। कि पश्चिम की स्त्रियों का नकल करे।

समाज सेविका निर्मला शर्मा के अनुसार " भारत के गांवों में रहने वाली स्त्री तो मुक्त होने की इच्छा व्यक्त नहीं करती। एक मजदूरन भी ऐसी सोच नहीं रखती। मुक्ति वो स्त्रियां चाहती हैं जो कम कपड़ों में टेलीविजन के विज्ञापनों में नजर आती हैं ताकि वो कपड़ों का बोझ और हल्का कर सकें। नारी मुक्ति के बारे में वो औरतें सोचती हैं जिनकी जुबान पर हमेशा रहता हैये दिल मांगे मोर


निष्कर्ष यही है की नारी उत्थान और बराबरी आबश्यक है पर उसके मानक भारतीय हो
तथ्य और आकडे साभार.....

-Bureau of Justice Statistics,

2Deptartment of Justice,

3Centers for Disease Control and Prevention (CDC),

4National Coalition Against Domestic Violence (NCADV),

5Bureau of Justice Statistics (table 2, page 15),

6US Census Bureau (page 12),


7National Institute of Justice (pages 6-7),


8Family Violence Prevention Fund,



9University of North Carolina,

10National Coalition of Anti-Violence Programs (NCAVP),

11http://www.bhartiyapaksha.com/?p=1634

21 comments:

  1. प्रवीण जी यदि ये कहूं कि ये आलेख मेरे द्वारा पढे गये सभी आलेखों मे सबसे प्रभावित करने वाला रहा....कमाल का रिसर्च और उतना ही प्रभावी संकलन...मैं हतप्रभ हूं...कौन कहता है ब्लोग्गिंग में गंभीर लेखन नहीं होता ..उन्हें ये देखना चाहिये..और उनको भी जो महिला विषयों पर लिखते हैं...बहुत बहुत शुभकामनायें..लिखते रहें..

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  2. प्रवीन मैं तुम्हारी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ । दूर क्यों जाना भारत मे ही ऐसे कितने उधारण मौज़ूद हैं जहाँ औरतोंने शालीनता मे रह कर और पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुये प्रगति की । और आज भी बडे बडे पदों पर सफलता से काम कर रही हैं। ये भी सही है कि नारी आज भी उपेक्षित और शोशित हो रही है इस के लिये उसे खुद लडने की जरूरत है | मगर अपनी सभ्यता और संस्कृति मे रह कर । हालत मे फर्क पड रहा है जो हमारा समय था वो अब नहीं है और जो अब है वो अज के बाद नहीं रहेगा। बस इसे सही दिशा देने की जरूररत है पुरुश को भी अपने अहं से बाहर आना होगा घर मे बराबरी का दर्जा देना होगा नहीं तो ऐसा अक्रोश उभरता ही रहेगा। घरों मे आज भी कितने फैसले अपनी मर्ज़ी से औरत ले पाती है नौकरी करते हुये भी खर्च करने का उसे अधिकार नहीं पुरुश चाहे उस धन से शराब पीये या जुआ खेले। सिर्फ अकेली औरत इस शोशण को बन्द नहीं कर सकती । सिर्फ पुरुश सोच बदले और उसे घर मे मान सम्मान मिले । कोई लडकी अपना घर तोड्ना नहीं चाहती। ये बाज़ार्वाद और मीडिया के खिलाफ क्यों नहीं कोई बोलता जो हमारे बच्चों को अश्लीलता परोस रहे हैं और हमारी संस्कृति से खिल्वाड कर रहे हैं क्या वहाँ सभी लडकियाँ हैं जो अश्लील हैं आज पुरुश भी तो प्रगतिवादी हो गया है आज लडके चाहते हैं कि हमारी पत्नि हनीमून पर जीन्स पहन कर जाये वो माडर्न बन कर रहे तो फिर केवल लडकियों को इस के लिये दोशी नहीं ठहराया जा सकता। सारा समाज ही अपनी संस्कृ्ति को भूल रहा है। चिन्ता इस बात की है कि पूरे समाज से ये रोग कैसे दूर किया जाये। केवल कुछ एक लडकियों के कहने से सब कुछ खराब नहीं हो रहा पुरुशों को भी सोचना होगा। आलेख अच्छा है मगर केवल लडकियों को ही अकेले दोश देना सही नहीं। बदलना है तो पूरे समाज को उन को भी जो लडकियों का शोशण करते हैं और उन्हें उकसाते हैं इस अश्लीलता के लिये| aalekh बहुत सार्थक और बडिया है । शुभकामनायें

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  3. बहुत बढिया आलेक लिखा है बधाइ स्वीकारें। बहुत ही बढिया प्रस्तुति है। लेकिन निर्मला जी की बात भी सही है कि मात्र स्त्रीयों पर ही दोष नही लगाना चाहिए।
    एक बेहतरीन आलेख के लिए फिर से बधाई।

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  4. अरे प्रवीन भाई ये क्या ऐसे आकड़े आपको प्रस्तुत नहीं करने चाहिए थे। बड़ा दुःख हुआ होगा उन्हे ये आकड़े देखकर जो कि अपने आपको पश्चिमि सभ्यता के अनुरुप ढाल कर ये कहती फिरती हैं कि हम है प्रगतिवादी महिला जो की किसी से कम नहीं। आपने बड़े ही रोचक आकड़े प्रस्तुत किये है। शायद इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपने को प्रगतिवादि कहने वाली महिंलाओं को कुछ सदबुद्धी मिले। मैं ये नहीं कह रहा कि आप प्रगातिवादि मत बनिये या आप प्रगति ना किजिए लेकिन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के साथ हो तो अच्छा है।

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  5. नारीमुक्ति के लिए सिर्फ नारे लगाना और आन्दोलन चलाना बेमानी है....मेरे ख्याल से कोई भी महिला जो सचमुच नारी का उत्थान चाहती हैं...वह हर स्तर पर नारी का विकास चाहती है. जो भी कहना था निर्मला जी ने अपनी प्रतिक्रिया में उसका उल्लेख कर दिया है.लड़कियों के वस्त्रों पर बहुत सारे पुरुषों को आपत्ति है ..पर ये तो सोचें, ये लड़कियां सम्पूर्ण नारी जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं ...पूरे नारी समाज में कितनी प्रतिशत लड़कियां ये पाश्चात्य कपड़े पहनती हैं?..ठीक है,आपको सही नहीं लगता....आप विरोध प्रकट करें...पर पूरी नारी जाति पर ये आक्षेप न लगाएं कि वे पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित है.और जो कुछ लडकियां प्रभावित हैं..उन्हें आप नज़रंदाज़ कर सकते हैं....इस समाज में अलग अलग किस्म के लोग मिलते हैं....सह-अस्तित्व यही तो है.:)
    आपके अमरीकी आंकडों के बारे में मैं पहले भी कह चुकी हूँ ...इनका यहाँ कोई औचित्य नहीं क्यूंकि हमारे यहाँ अधिकाँश केस की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं कराई जाती
    एक इल्तिजा.......इतनी विचलित करनेवाली तस्वीरें न लगाएं....पोस्ट पढना मुश्किल हो जाता है.

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  6. रश्मि जी मै तिपाद्दी में आप का जबाब नाम लेकर नहीं देना चाहता था , क्यूंकि मै विवाद नहीं चाहता था , मगर अब मै मजबूर हो गया हूँ सो अब आप के सभी पर्श्नों को मै तिपद्दी में अपने ज्ञान के आधार पर उत्तर देते हुए लिख रहा हूँ उम्मीद है आप व्यक्तिगत नहीं लेगी ,, सबसे पहले आप ने कहा
    ( (लड़कियों के वस्त्रों पर बहुत सारे पुरुषों को आपत्ति है ..पर ये तो सोचें, ये लड़कियां सम्पूर्ण नारी जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं ...पूरे नारी समाज में कितनी प्रतिशत लड़कियां ये पाश्चात्य कपड़े पहनती हैं?..ठीक है,आपको सही नहीं लगता....आप विरोध प्रकट करें...पर पूरी नारी जाति पर ये आक्षेप न लगाएं कि वे पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित है))
    तो मै कहना चाहूँगा की मुझे लड़कियों के वस्त्र पर कोई आपत्ति नहीं क्यूँ की वस्त्र निजी मसला है और किसी भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के वस्त्र पहनने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए मेरा ,,, मेरा विरोध तो केवल पश्चिमी सभ्यता की बेहूदी परम्पराओं और मान्याताओं से है,, और मेरा विरोध सभी महिलाओं से भी नहीं है और ना ही मैंने सभी महिलाओं पर किसी प्रकार का आक्षेप लगाया है ,,, मेरा विरोध तो के वल उन चंद कथित प्रगति वादी महिलाओं(यहाँ पर मैंने कथित प्रगतिवादी इसलिए कहा की कुन उन्हें प्रगति की समझ ही नहीं क्यूँ की प्रगति उन्नति का नाम है किसी का पिछलग्गू बनना नहीं और उसका तो बिलकुल नहीं जिसके प्रगति वाद के इतने नकारात्मक प्रभाव वहा का समाज झेल चुका है ) से है जो पश्चिमी बेहुदे पन को ही वास्तविक प्रगति मान ती है और उसके प्रसार पचार को ही महिला उत्थान समझती है ,,,, और आगे आप ने मेरे मत को स्वीकार भी किया आप स्वम लिखती है ,,,
    .और जो कुछ लडकियां प्रभावित हैं..उन्हें आप नज़रंदाज़ कर सकते हैं....इस समाज में अलग अलग किस्म के लोग मिलते हैं....सह-अस्तित्व यही तो है.:))
    आप ने दूसरा प्रश्न उठाया की जो अमेरिकी आकडे मैंने यहाँ पर दिए है ,, उनका हामारे यहाँ से कोई औचित्य नहीं ..यथा
    आपके अमरीकी आंकडों के बारे में मैं पहले भी कह चुकी हूँ ...इनका यहाँ कोई औचित्य नहीं क्यूंकि हमारे यहाँ अधिकाँश केस की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं कराई जाती
    मै आप की इस बात से सहमत हूँ की बहुत से आकडे दर्ज नहीं होते और हो सकता है शोषण वहा से भी जयादा होता हो और इस को तो हमें ठीक करना है और इसी के खिलाफ तो हमें आन्दोलन चलाना है अब मेरे इन आकडो से कम से कम इतना तो उजागर हो ही गया है है की अमेरि का में प्रगति वाद के बाबजूद इतना शोषण है फिर हमारे चंद कथित प्रगतिवादी अमेरिका के प्रगति वाद को भारत में क्यूँ लाना चाहते है ...
    ये तो वही बात हो गयी अंधे का सहारा लेने में क्या बुराई है आखिर हम भी तो काने है ,,,
    अरे हम तो एक आँख से पार भी हो सकते है मगर अँधा अपने साथ हमें भी ले मारेगा

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  7. aurat kyaa karey kyaa pehnae kehaa jaaye kaesae uthae baethey kis sae baat karaey kis sae ghunghat karae

    kyaa bharityae sanskriti kewal aur kewal inhi baato par tiki haen

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  8. ओह ये तो बड़ी भयावह और चिन्ताजनक स्थिति है।
    सभी देशों को इस बारे में गम्भीरता से सोचना होगा।
    जागरण करने के लिए आभार!

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  9. प्रवीण जी, सबसे पहले मैं आपको सदर प्रणाम करना चाहता हूँ इतनी गंभीर और सोचनीय विषय वस्तु पर आपने बहुत बढ़िया और बेहतरीन ढंग से प्रश्न उठाया है...जिन्हे हम देवी की संज्ञा देते है उनकी या स्थिति वो भी एक पूर्ण विकसित देश में इस दुनिया का क्या होगा..पता नही..चित्रो के साथ आपकी प्रस्तुत अत्यन्त सार्थक रही..हम आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करते है..बस कुछ सुधार हो जाए इसे पढ़ कर और देख कर यही दुआ है विकसित देश के नागरिकों से.....

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  10. प्रवीण जी,
    आपका आलेख पढ़ा और आंकडे भी देखे ....
    अब आप खुद ही सोचिये की जिन देशों में न्यायप्रणाली इतनी मज़बूत है की उसकी गिरफ्त से कुछ भी बच पाना मुश्किल है वहां यह हालत है तो फिर भारत जैसे देश में जहाँ कानून हर व्यक्ति अपनी जेब में ले कर घूमता है वहां क्या स्तिथि होगी....महिलायें कितने दबाव में जीती होंगी और आप भारतीय मूल्यों की बात कर रहे हैं.....सबसे पहले तो आप यह बताइए की वो मूल्य हैं क्या ???
    क्या घूँघट में रहना भारतीयता है ?
    क्या अपनी पसंद का जीवन साथ चुनना भारतीयता नहीं है ?
    क्या लड़कियों को पढना लिखना भारतीयता नहीं है ?
    आपने पश्चिमी सभ्यता की नक़ल की बात की है .....लेकिन मैं यह बिलकुल नहीं समझ पायी की ऐसी कौन सी बात है जिसके नक़ल भारत की स्त्रियाँ कर रही हैं.....???
    फिर घूम फिर कर मुद्दा लौट आता है कम कपडों पर......
    कम कपडे कितनी लडकियां या महिलायें पहन रही हैं......सबसे पहले हम सब अपने घरों में देखें ....क्या हमारी माएं, बेटियाँ, चाची , नानी, भाभी ऐसा कर रही है.....मोहल्ले में देखे ...अपने आस पास १००-२०० घरों में देखे....फिर आकलन करें......एक मल्लिका शेरावात के साथ सब को न जोडें......और फिर इतनी बड़ी नस्ल की मानसिक आज़ादी कुछ गज कपडों से नहीं आंकी जा सकती हैं....
    हम भारत के आने वाली नस्ल की बात कर रहे हैं ...और जो उस नस्ल की ज़मीन है उसके साथ खिलवाड़ न किया जाए तो बेहतर होगा.....क्यूंकि अब बात सिर्फ भारत की नहीं है ...आने वाली पीढी को ऐसा ही बनाना होगा जो दुनिया में कही भी फिट हो सके......सिर्फ भारत में नहीं......
    और आपके लेख में जो सबसे अजीब सी बात मुझे लगी वो है....अमेरिका में जो भी अपराध हो रहे हैं आपने उनका सारा दोष महिलाओं पर डाल दिया ....क्या महिलायें इस अपराधों को जन्म दे रहीं हैं क्या पुरुष समझ समाज इतना नपुंसक है की अपने कर्मों पर लगाम नहीं रख सकता.....वाह क्या तथ्य हैं......पिटे भी औरत और दोष भी उसी का.....ये अच्छी रही.....!!! क्या पुरुषों का दंभ इतना ऊँचा है की अपनी गलती भी नहीं स्वीकार सकता है....
    सच पूछिए तो मुझे इस आलेख का मकसद ही समझ में नहीं आया ...

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  11. और प्रवीण जी, ये सारे आंकडे तो आपको मिल गए लेकिन उन आंकडों का क्या होगा जो भारत में भारतीयता के झंडे तले रोजाना हो रहे है.....पश्चिमी सभ्यता को आत्मसात करने वाली स्त्रियाँ या तथाकथित पुरुष विरोधी स्त्रियाँ कितनी होंगी भला पूरे हिन्दुस्तान में और अपराधों में इनका हाथ भी कितना होगा लेकिन अमेरिका से हिन्दुस्तान में अपराधों का प्रतिशत कितना कम या ज्यादा है यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है...
    अब देखिये न पश्चिनी सभ्यता को आत्मसात सिर्फ औरतें तो नहीं कर रहीं हैं पुरुष भी कर रहे हैं...जैसे आज कल शादी के बगैर साथ रहना ....अब इसमें सिर्फ लड़की का तो दोष नहीं है.....वो पुरुष क्यूँ रह रहा है भला....अगर लड़की ने कम कपडे पहने हैं तो पुरुष अपना ऊँचा चरित्र दिखाएं ....क्या ज़रूरी है वो भी रसातल में चले जाएँ...
    आपके आलेख में पुरुष विरोधी महिलाओं को तो आपने फटकार दे दी लेकिन कभी सोचा है की आखिर वो पुरुष विरोधी क्यूँ हैं.......??? और उन पुरुषों को भी तो कुछ कहा होता जो उसी तरह की फटकार के लायक हैं.....

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  12. निर्मलाजी से अक्षरशः सहमत हूँ ...यह सच है की नारी उत्थान पर अभी देश में काफी कुछ किया जाना बाकी है ...मगर फिर भी उन अलगाववादी नारी मुक्ति आंदोलनों की सूत्रधारों को सोचना होगा ...स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक हो सकते हैं ...नारी मुक्ति की आड़ में उन्हें एक दुसरे का विरोधी या शत्रु बनाए जाने की किसी भी कोशिश को नकार दिया जाना चाहिए ....
    अगर हम समाज में नजर डालें ...आस पास के परिवारों में देखें ....पति पत्नी में अनबन होने पर दहेज़ विरोधी कानून की आड़ लेकर पूरे ससुरालवालों को बेवजह परेशान किये जाने वाले हजारों किस्से मिल जायेंगे ....और जो रिश्ते महज कानून के दर से निभाए जा रहे हो ...उनमे आत्मीयता और वफादारी के उम्मीद करना उचित है होगा ....!!
    जहाँ तक वस्त्रों की बात है ....यहाँ मेरा मत अलग है ...जरुर वस्त्र मर्यादित होने चाहिए ...अच्छी बात है ...मगर पूरी तरह वस्त्रों में लिपटी महिलाएं या लड़कियां भी शोषण का शिकार होती रही है ...यहाँ पुरुषों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा ...!

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  13. जो रिश्ते महज कानून के दर से निभाए जा रहे हो ...उनमे आत्मीयता और वफादारी के उम्मीद करना उचित है होगा ....!!
    इसे ऐसे पढ़े ...
    जो रिश्ते महज कानून के डर से निभाए जा रहे हो ...उनमे आत्मीयता और वफादारी की उम्मीद करना क्या उचित होगा ....!!

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  14. bhai, aap ka lekh padha bahut sanwedanshil vishay par maarmik roop se aapne likha.

    aapko post ke liye aur jaaagrit karne ke liye aapka shukriya.

    isi vishy se sambandhit kuchh is naacheez ke bhi lekh hai. bas hindi men 'nari' likh kar blogs search box men khoj lijiyega.

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  15. शोध से भरपूर प्रभावी आलेख...


    निर्मला जी की बात से सहमत

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  16. आदरणीय अदा जी मुझे नहीं लगता आप ने मैंने जो लिखा और जैसे लिखा वैसे ही सम,झा हो सबसे पहले मै नारी विरोधी नहीं हूँ ,,, नारी उत्थान विरोधी नहीं हूँ , प्रगति विरोधी नहीं हूँ , पश्चिमी संस्क्रती का अगर पश्चिम वाले प्रयोग करते है तो मै उसका भी विरोधी नहीं हूँ ,, मै विरोधी हूँ पश्चिमी संस्क्रती सभ्यता और मानसिकता का भारतीयता में घेल मेल का (क्यों की उसका बहुत बड़ा परिणाम हमारा समाज झेल चुका है ) अब बात करता हूँ आप के द्बारा उठाये गए मुद्दों की ,,,
    आप ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में चार मुख्य मुद्दे उठाये ..
    १-अमेरि का की न्याय प्रणाली इतनी बेहतर है फिर भी वहा महिलाओं के साथ इतना अत्याचार होता है और भारत में जहा हर व्यक्त कानून अपनी जेब में लेकर घूमता है वहा की स्तिथि तो व्यक्त नहीं की जा सकती ,,
    " मै कहना चाहूँगा अदा जी भारत में स्त्रियों की दशा कोई बहुत अच्छी नहीं है और उसी स्तिथि को सुधारने के लिए हमे जन आन्दोलन(मै इसे केवल नारीवादी आन्दोलन नहीं मानता क्यों की इसमें पूरे समाज को अपनी द्र्स्टी और दिशा बदलनी होगी ) की आबश्यकता है पर अमेरिका सहित और पश्चिमी देश जो कहा जाता है एक सफल नारीवादी आन्दोलन चला चुके है और वहा नारियो को पर्याप्त अधिकार मिल गए है ,,, अगर वहा यह स्तिथि है तो कम से कम वो हमारे सुधार आन्दोलन के अग्रज तो नहीं हो सकते ,,,, कहना बस यही है की सच्चाई की तरफ आँख मुद कर हमारे कथित प्रगति वादी लोग( जिनमे महिलाए और पुरुष दोनों सम्मिलित है ) जो उनका अन्धानुकरण कर रहे है उनकी आँखे खोलने के लिए मैंने इन अमेरिकन तथ्यों का उपयोग किया है ,,,,"
    २-दूसरा प्रश्न आप ने भारतीय मूल्यों को लेकर किया की भारतीय मूल्य है क्या और भारतीय स्त्रिया (केवल कथित प्रगतिवादी )नक़ल किस चीज की कर रही है ? कुछ कुतर्क भी किये जो सभी कथित प्रगति वादी करते है, यथा लड़कियों को न पढाना , घूघट रखना , जीवन साथी चुनने का अधिकार ना देना (जो तर्क नहीं कुतर्क ही है क्यूँ की भारतीय मूल्यों में इन सब चीजो का कोई स्थान नहीं मै लंबा उदहारण भी दे सकता हूँ मगर स्थान अभाव के कारण नहीं दे रहा हूँ ,,,,)
    परिवार वाद भारतीय मूल्यों का ससक्त उदाहरण है इसी परिवार वाद की वजह से भारत में तलाक दर १.१ % जबकि परिवार वाद में विस्वाश ना होने के कारण अमेरिका में तलाक दर ५०% है ,,,
    ३-तीसरा प्रश्न आखिर स्त्रिया क्या अनुसरण कर रही है देखे
    समलैंगिक संबंधो का भारतीय समाज आना क्या पश्चिमी अन्धानुकरण नहीं है ,,,,,
    पुरुष विरोधी मानसिकता ,,,पुरुषों को स्त्र्यियो की दयनीय स्तिथि के लिए जिम्मेदार मानना क्या पश्चिमी अन्धानुकरण नहीं है,,,
    लीव इन रिलेसनशिप का व्यवहार क्या पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण नहीं है ,,,
    कपड़ो की संकीर्णता के आधार पर प्रगति का प्रदर्शन क्या पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण नहीं है
    यैसे बहुत से तथ्य है
    ४-चौथा प्रश्न उस बात को लेकर जो आप को बहुत अजीब लगी ,, आप का कहना है की मैंने अमेरिका के आकडे रख कर सारा का सारा दोष अमेरिकन स्त्रियों पर डाल दिया ,,,
    यहाँ पर मेरा कहना है अगर आप लेख को फिर पढेगी तो आप पाएगी की मैंने मैंने पुरुषों पर भी लिखा है और मेरे यहाँ लिखने का मतलब स्त्री या पुरुष का विरोध करना नहीं बल्कि मै यह दिखाना चाहता हूँ की जिस परम्परा व्यवस्था या सभ्यता या वाद (यहाँ मै पश्चिमी नारीवाद की वाद कर रहा हूँ ) को अपना कर वहा की स्त्रियों की ये दशा है क्या हमें अपनी स्त्रियों की दशा को सुधारने के लिए उसे अपनानाचहिए
    यहाँ पर मैंने ये लेख किसी पूर्व आग्रह से ग्रसित हो कर नहीं लिखा और ना ही मै पुरुष वादी या स्त्री वादी हूँ मै तटस्थ हूँ

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  17. Praveen ji bahut accha likha bahut badiya subject hai but ye jo kuch tasvere aapne lagai hai bahut marmik hai kamjor dil ke log bardast nahi kar sakte so plz mind mat karna aur inko hata dena plzzzz. baki meri subh-kamnaye aapke sath hai wasim

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  18. Mai rashmi ji aur ADA ji ki baat se sahmat hoo
    ....kya saari me aurat ka badan nhi dikhta ...maine khud kitni old ladies ko dekha hai ki wo apna anchal tak teek se sambhal nhi paati ...old hai to kya wo aurat nhi hai...
    aurat ke upar hone wale atyacharon ka karan ...kapde nhi ...logon ki galat MANSIKTA hai...kuchh had tak ...ye SHASTR or DhARAM bhi hai ..jo aurton ko tadna dene ke liye kahte hai ....SUNDERKAND padhiye

    agar ganv (village)ki aurte apne haq ke liye aawaz nhi uthati to iska reason unki ashiksha hai ...they are uneducated
    aap ko kya lagta hai aurat kewal ..SATI ..hone ya BALIKA VADHU ban jane se sanskar yukt ho jaayegi ...
    aap america ki baat karte hai ...kya waha pait me hi bachiyon ko maar diya jaata hai...?
    unse shisha ka adhikar chhen liya jaata hai ...???
    kya India me wo rape ka shikar nhi hoti ...DEVDASI PRATHA ke naam pr Panditon ko nhi sonp di jaati.....ya shoshan ka shikar nhi hoti ...aaj bhi har dusre ghar me ek ..chhoti bachchi ..bartan ..or jhhadu pochhe ka kaam karti hai ...
    har red light par god me chhote bhai bahno ko lekar bheekh mangti hai..
    apne hi rishtedaron dwara Rape hoti hai...
    apne hi ghar me ...domestic violence ka shikar hoti hai ...
    ye to insano ki duniya hai ....hamari aurton ko to bhagwan ne bhi nhi chhoda ...shastron me padhiye kaise hamare INDRA dewta ..hrishiyon ki patniyon ka ....???..ab mai kya kahu..???
    jis seeta mata ko hum pujte hai unhe kon sa sukh mila...?
    Dropdi ko bhool gaye kya aap ...bhaiyon ne mil baat ke khaya tha...
    hame apni sanskriti ki jyada duhai nhi deni chahiye...
    mai kahna chahungi ki aankdon ki baat chhodiye ..ye to banaye or bigade jaate hai ...yatharth ko pahchaniye...aurat ko ankdon ki nhi ...aazadi ...padhne ki aazadi ...hamsafar chun ne ki aazadi..faisle lene ki aazadi...career chun ne aazadi...Naaa (NO) kahne ki aazadi ...sabse badi JEENE KI AAZADI chahiye....

    PRIYA....

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  19. आपने आखिर किस संस्कृति की वकालत की है ??
    अपने आलेख में ??
    उसपर ज़रा अपना नज़रिया स्पष्ट करें बंधु
    आपके अनुसार निष्कर्ष यही है की नारी उत्थान और बराबरी आबश्यक है पर उसके मानक भारतीय हो
    अब ये भारतीय मानक कैसा होगा ??
    इस्लाम और ईसाइयत को आपने आलेख में घसीट तो लिया अब भारतीय मानक पर भी ज़रा विस्तार से समझाएं बंधु

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