Thursday, March 11, 2010

हाय हमें अब तोबक्श दो दाता (प्रवीण पथिक )


जनता लाचार वादे बेकार महगाई बढती जारही है सरकार सो रही है कुम्भकर्णी नीद,,, मुद्रा स्फीति की दर लगातार बढे जारही है और सरकार ग्रोथ रेट बढ़ने की बात करती है ,,, आम जन पिसता जा रहा है और सरकार आंकड़ो का खेल खेल रही है फिर क्यों न सरकार की जय बोले जय हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तीन चार साल के अन्दर के अन्दर चीजो के दाम आसमान छूने लगे है ,, हर चीज पचास से सौ दो सौ प्रतिशत मूल्य ब्रद्धि कर चुकी है(केवल किशानो की उपज और मजदूरों की मजदूरी छोड़ कर) जनता पस्त हलाल होते बकरे सी मिमिया रही है ,, मुनाफाखोर जमा खोर चांदी काट रहे है .....फिर क्यूँ न सरकार की जय बोले ,,,, जय हो

नेता एशो आराम और मजे के साधन जुटाए जा रहे है किसान लागत के लिए कर्ज को न चुका पाने से आत्म हत्याए कर रहे है ,,,,मनमोहन जी ट्रिकल डाउन थ्योरी को पेट से सहेजे बैठे है ,,,
( एक अमेरिकेन अर्थशास्त्री की थ्योरी जिसके अनुसार अगर ऊपर का तबका पूंजी में बढेगा मतलब अमीर और अमीर बनेगा तो तो पूंजी का रिसाब नीचे भी होगा और गरीब तबके को भी फायदा पहुचेगा ),,, सरकार नकारा हो चुकी है आंकड़ो में छेड़ छाड़ कर गरीबी मिटाने का प्रयाश कर रहे आरक्षण की गोटी दिखा कर भूखो की भूख मिटाने का भरमाया प्रयाश किया जा रहा है ये प्रयाश ठीक वैसा ही जैसे भूखे कुत्ते को रोटी दिखा कर हम चाहे जहा ले जा सकते है ,,एक बार फिर जय हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

पर ऐसे क्या आईये इस आंकड़ो की सरकार से कुछ आंकड़ो से बात कर लेते है...
उदारीकरण का भूत हवा होते वादे


१८ साल पहले नरसिंह राव सरकार ने जब उदारीकरण निजी करण की शुरुआत की थी तो आज के प्रधान मंत्री तब वित्त मंत्री थे ,,, उन्होंने तब ट्रिकल डाउन थ्योरी की पिपहरी बजाते हुए दावा किया था की जब समाज के शिखरों पर सम्रद्धि आएगी तो वह रिस कर नीचे तक पहुचेगी ,,,तब से १८ बर्ष बीत चुके हुआ उल्टा गरीब और गरीब हो गया और आमिर और आमिर होते जा रहे है ,,,
कुछ तथ्यों में देखे ..................
१-केपजेमिनी ,और मेरिल लिंच ,, द्वारा तैयार एशिया प्रशांत सम्पदा रिपोर्ट के अनुसार विगत कुछ वर्षो के दौरान भारत करोडपतियो की संख्या में ब्रद्धि दर की द्र्स्टी से पूरी दुनिया में वियतनाम के बाद दूसरे स्थान पर है ,,, दिसंबर २००७ में भारत में १ लाख तेईस हजार करोडपति थे जो एक बर्ष पूर्व के मुकाबले २३ प्रतिशत अधिक थे
२-फोबर्स पत्रिका के अनुसार बर्ष २००६ में दुनिया के ९४६ अरबपतियो में ३६ भारतीय शामिल थे , २००५ दुनिया में ७६८ अरब पति थे यानी एक बर्ष में विश्व स्तर पर अरब पतियों की संख्या में २६ प्रतिशत की ब्रद्धि हुई जबकि भारतीय अरब पतियों की संख्या में ६४ प्रतिशत की
देश के दश सर्वोच्च ख़रब पति हर मिनट में दो करोड़ रूपए बनाते है अकेले मुकेश अम्बानी हर मिनट ४० लाख रूपए बनाते है
३-दुनिया के शीर्षस्थ ५ महाधनिको में २ भारतीय है
४-फोबर्स पत्रिका द्वारा तैयार दुनिया के अरब पतियों की सूचि में २००४ में ९ भारतीय शामिल थे जो २००७ में बढ़ कर ४० हो गए अगर इस मसले को वैश्विक स्तर पर देखे तो भारत से बहुत अमीर जपान में अरब पतियों की संख्या २००७ में महज २४ फ्रांस में १४ और इटली में १४ थी ,,,,
आश्चर्य तो तब होता है जब आर्थिक विकाश और तेजी से बढती गैर बराबरी के बाबजूद चीन में २००७ में केबल १७ अरब पति ही थे,,,
५- भारत के अरब पतियों की दौलत महज एक साल में १०६ अरब डालर से बढ़ कर १७० अरब डालर हो गयी


अब ये तो रही भारत में पूँजी ब्रधि जो सरकार की अमीरों और उद्धोग पतियों के साथ साठ गाँठ औरमेल जोल के कारण बढ़ी सारे मुनाफे के धंदे सरकारी सांसदों और सरकारी महको ने अपने मातहत उद्धोग पतियों को उपहार स्वरूप दे दिए अगर इसे खरी भाषा में कहे तो बेच दिए और बदले में मोटी रकम अपने स्विस और भारत में विभिन्न खातो में जमा की ,,,
"अर्थ शास्त्री अमित भादुड़ी के अनुसार अरब पतियों की दौलत में ६० प्रतिशत की बढोत्तरी इसलिए मुमकिन हुई क्यों की राज्य और केंद्र सरकारों ने खनन उद्धोगी करण और विशेष आर्थिक क्षेत्रो के लिए "सार्वजनिक उद्देश्य " के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीन निजी कार्पोरेशनो को सौप दी ,,,,,
ये तो रही ऊपर की बात अब जरा नीचे भी देख ले
१८ बर्षो के नब उदारिबाद के दौर के बाद इक्कीसवी सदी के भारत की खासियत ये है की यह अरब पतियों की दौलत के हिसाब से अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है ,, लेकिन बेघरो कुपोषितो, भूखो अन पढो की तादात के लिहाज से नंबर एक है एश्वर्य - सम्रद्धि की चका चौंध भरी दुनिया का अन्धकार मय पहलू यह है की ( रास्ट्री नमूना सर्वेक्षण के अनुसार ) १-देश की १८ करोड़ आबादी झुग्गियो में रहती है ,,,, और १८ करोड़ आबादी फुटपाथों पर सोती है,,,,

( निकम्मी सरकारे जिनमे वर्तमान सरकार का अधिकतम समय शासन रहा है आम आदमी को ये अदद छत भी मुहयिया नहीं करवा पायी जबकि नेताओं के बंगलो और हवेलियों की संख्या बढती जा रही है )
२-रास्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रतिदिन उपभोग मात्र १९ रूपए और शहरी भारत में मात्र 30 रूपए है ,, गावोँ की दस प्रतिशत आबादी प्रति दिन ९ रूपए पर गुजारा करती है (आप खुद सोच सकते है इस पूंजी पर कोई कैसे गुजारा कर सकता है लाखो परिवारों को आधे पेट या भूखे ही सोना पड़ता है

( जबकि सत्ता रूढ़ नेताओ पर और उनके परिवारों पर औसत ३००० रूपए प्रति व्यक्ति प्रति दिन खर्चा आता है)


२-रास्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रतिदिन उपभोग मात्र १९ रूपए और शहरी भारत में मात्र 30 रूपए है ,, गावोँ की दस प्रतिशत आबादी प्रति दिन ९ रूपए पर गुजारा करती है


(आप खुद सोच सकते है इस पूंजी पर कोई कैसे गुजारा कर सकता है लाखो परिवारों को आधे पेट या भूखे ही सोना पड़ता है ( जबकि सत्ता रूढ़ नेताओ पर और उनके परिवारों पर औसत ३००० रूपए प्रति व्यक्ति प्रति दिन खर्चा आता है)


३- नॅशनल कमीशन फार इण्टर प्राइजेज इन द अन आर्गेनाइज्ड सेक्टर की एक रिपोर्ट के अनुसार बर्ष २००४-०५ में लगभग ८४ करोड़ लोग ( यानी आबादी का ७७ प्रितिशत हिस्सा ) रोजाना २० रुपये से भी कम पर गुजारा करता है इनमे से २२ फीसदी लोग रोजाना ११.६० रुपये रोज़ की आमदनी ( यानी गरीबी रेखा से नीचे .) १९ फीसदी लोग रोजाना ११.६० रुपये से १५ रुपये की आमदनी पर और ३६ फीसदी लोग १५ रूपये से २० रुपये की बीच की आमदनी पर गुजारा करते है
अब बारी सरकार की जय हो बोलने की है,, ये निकम्मी सरकारे कितनी बेरहम और खून चूसक है जिन्हों ने ११.६० रूपये से कम आमदनी के आदमी को गरीब माना है अगर सच में देखा जाए तो १०० रुपये की आमदनी तक का आदमी गरीब है और उसे गरीबी रेखा से नीचे मानना चहिये यानी देखा जाए भारत की ९५ प्रतिशत आबादी गरीब

अब कुछ और बाते जिनकी चर्चा अगली पोस्ट में
१-आम चीजो का दाम कितना बढा अरे १०० दो सौ नहीं हजार हजार प्रतिशत तक
२-कुपोषण के मामलो में विश्व में हमारा स्थान
3- स्त्रियों की बदतर स्थिति में विश्व में हमारा स्थान
४-घटती औसत आयु के मामले में हमारा स्थान ,,
५- उत्पादन ब्रद्धि फिर भी प्रति व्यक्ति आधी होती भोजन उपलब्धता
जैसे और अनेक मुद्दों पर चर्चा अगली पोस्ट में

7 comments:

  1. ye janta ki voton ka hi natija hai isiliye janta ko hi to bhugatna padega na........jab boya ped babool ka to aamkahan se hoye........phir bhi koi nhi jagta yahi to is desh ka durbhagya hai.

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  2. ( जबकि सत्ता रूढ़ नेताओ पर और उनके परिवारों पर औसत ३००० रूपए प्रति व्यक्ति प्रति दिन खर्चा आता है)
    ये फिगर कुछ गलत लगी। शायद एक दो ज़ीरो और होंगी। तो क्या तुम्हें लगता है कि कोई और इस व्यवस्था को बदल देगा? जब बाजपयी जैसे इन्सान की एक नही चली तो और कौन कर पायेगा ये। सभी नेता सभी पार्टियाँ एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। इसे आज के युवा नही समझ सकते शायद। उन्हें तो धर्म के नाम पर उलझा कर खुद मलाई खा रहे हैं सब नेता। जब तक हम लोग {सभी} भ्रश्टाचारी और स्वार्थी बने रहेण्गे तब तक इन नेताओं पर नकेल नही कसी जा सकती। खाली जोश मे लिखने से क्या होगा? शायद अपनी ऊर्जा को बेकार करना है। इन पर कोई असर नही होने वाला नेताओं की चमडी बहुत मोटी है। आलेख बहुत अच्छा है। शुभकामनायें

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  3. ये है विकास की राह पर अग्रसर भारत की स्थिति । यहाँ नेता या सरकार को भारत की आम आवाम से कोई मतलब नहीं है , आप ने बिल्कुल ठिक कहा कि यहाँ हमारे देश जो कुछ भी कयावाद कि जा रही है वह मात्र पूजीपतियों के लिए है । यहाँ मुद्दा उठता है आरक्षण का , यहां आतकंवादियों को जिंदा रखने के लिए करोड़ो रुपये खर्च किए जाते हैं , लेकिन गरिबो से किसी को कोई मतलब नहीं है , आपका आभार इस बढ़िया पोस्ट के लिए ।

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  4. सोचता था कि कांग्रेस पूंजीपतियों की पार्टी है, मगर अब लगता है सभी पार्टियां ही पूंजीपतियों के लिये है जी
    काफी मेहनत से तैयार की गई इस विस्तृत रिपोर्ट के लिये धन्यवाद
    अगली कडी का इंतजार है, (जरुर आंखें फाडने वाली होगी)

    प्रणाम स्वीकार करें

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  5. गजब का विश्लेषण किया है...आगे की कड़ियों का इन्तजार है. जारी रहिये.

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  6. बहुत बढ़िया विश्लेषण कर रहे हो पथिक ! एक अनुरोध है साथ के फोटोग्राफ्स वित्रश्ना पैदा करते हैं , उन्हें हटाने पर विचार करें ...
    जहाँ तक मुझे याद आता है इस तरह के फोटोग्राफ्स कानूनन सेंसर शिप एक्ट में भी आते हैं...किसी ज्ञाता से बात कर लें ! अच्छे लेख के लिए शुभकामनायें !

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